गुरुवार, 23 जुलाई 2020

सूर्यसिद्धान्त

कतिपय अशुभ मुहूर्तों में श्रीरामजन्मभूमि मन्दिर का आरम्भ

मन्दिर के भवन का आरम्भ गृहारम्भ के अन्तर्गत ही आता है,यद्यपि देवालय हेतु कुछ अतिरिक्त नियम भी होते हैं ।

 गृहारम्भ के सामान्य नियमों के अनुसार ५ अगस्त २०२० ई⋅ को गृहारम्भ का मुहूर्त द्वितीया तिथि में है ।

उस समय कुछ छिटपुट अशुभ योग भी हैं जिनका शमन किया जा सकता है । किसी भी कार्य हेतु पूर्णतया शुभ मुहूर्त ढूँढना अत्यन्त कठिन होता है ।

 एक कठपिङ्गल पण्डित केवल इसी कारण अविवाहित रह गये क्योंकि विवाह करने की इच्छा रहने पर भी उनको पूर्णतया शुभ मुहूर्त कभी मिला ही नहीं ।

परन्तु तिथि आदि का निर्धारण हो जाने पर ठीक−ठीक समय जानने के लिये लग्नशुद्धि भी अनिवार्य है,क्योंकि पूरी तिथि एकसमान शुभ नहीं होती ।

भवन के आरम्भ काल की कुण्डली में ग्रहों का अच्छे भावों में रहना अनिवार्य है ।

 मुहूर्त−चिन्तामणि में भी गृहारम्भ मुहूर्त काल की कुण्डली के शुभ होने पर बल दिया गया है ।

 चौबीस घण्टों में कुल १०४ कुण्डलियाँ बनती हैं क्योंकि ग्रहों की राशियाँ और भाव बदलते रहते हैं ।

५ अगस्त २०२० ई⋅ के दिन दोपहर १२ बजकर १५ शुभ मुहूर्त निर्धारित किया गया है जो उस दिन सर्वाधिक अशुभ है ।

काशी के तीन ज्योतिषियों को आमन्त्रित किया गया है जिनमें से किसी ने इस त्रुटि का खण्डन नहीं किया,उन तीनों में सबसे वरिष्ठ हैं डा⋅ रामचन्द्र पाण्डेय । दूसरे आमन्त्रित ज्योतिषी उनके शिष्य हैं । डा⋅ रामचन्द्र पाण्डेय काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में ज्योतिष विभाग के अध्यक्ष रह चुके हैं किन्तु उसी विश्वविद्यालय के सूर्यसिद्धान्तीय “विश्वपञ्चाङ्ग” का विरोध करते रहे हैं क्योंकि उनके मतानुसार सूर्यसिद्धान्त २५० ईस्वी की रचना है जिस कारण अब आउट−ऑव−डेट हो चुकी है ।

 सूर्यसिद्धान्त के अनुसार सूर्यसिद्धान्त के रचयिता भगवान सूर्य हैं । यदि सूर्यसिद्धान्त २५० ईस्वी के आसपास की रचना है तो सूर्यसिद्धान्त का रचयिता कोई पाखण्डी था जिसने झूठमूठ भगवान सूर्य को रचयिता बता दिया!

तब विक्रमादित्य के नवरत्न वराहमिहिर को भी झूठा और मक्कार कहना पड़ेगा जिन्होंने सूर्यसिद्धान्त को वेदमन्त्र गायत्री के देवता सविता की रचना बताया ।

 डा⋅ रामचन्द्र पाण्डेय “विश्वपञ्चाङ्ग” को भौतिक खगोलविज्ञान के आधार पर अप−टू−डेट करना चाहते थे जिस कारण काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के  “विश्वपञ्चाङ्ग” के तत्कालीन गणितकर्ता डा⋅ कामेश्वर उपाध्याय से उनका मतभेद हो गया और लम्बे विवाद के पश्चात् डा⋅ कामेश्वर उपाध्याय की विजय हुई जिस कारण ज्योतिष विभाग के अध्यक्ष डा⋅ रामचन्द्र पाण्डेय से  “विश्वपञ्चाङ्ग” की रक्षा करने के लिये “विश्वपञ्चाङ्ग” को ज्योतिष विभाग से ही अलग करने का निर्णय काशी हिन्दू विश्वविद्यालय को करना पड़ा ।

“विश्वपञ्चाङ्ग” सूर्यसिद्धान्तीय तो है किन्तु सूर्यसिद्धान्त के अंग्रेजी भाष्यकार ईसाई पादरी बर्जेस के गलत मत पर आधारित है ।

 पादरी बर्जेस के ही अनुयायी डा⋅ रामचन्द्र पाण्डेय हैं जो पादरी बर्जेस के मतानुसार सूर्यसिद्धान्त को भगवान सूर्य की रचना नहीं मानते और भौतिक खगोलविज्ञान के आधार पर अप−टू−डेट करना चाहते हैं ।

 “विश्वपञ्चाङ्ग” का गणित सूर्यसिद्धान्त के ग्रहगणित पर आधारित है किन्तु बीजसंस्कार रहित है । सूर्यसिद्धान्त के उपलब्ध ग्रन्थ में बीजसंस्कार के अध्याय को मध्ययुग में किसी बेवकूफ ने अप−टू−डेट करने के अधूरे प्रयास में भ्रष्ट कर दिया था,परन्तु सूर्यसिद्धान्तीय बीजसंस्कार पर ही आजतक भारत के सारे परम्परावादी पञ्चाङ्ग बनते आये हैं जिनमें सबसे प्रसिद्ध हैं काशी की “मकरन्द सारिणी” द्वारा बने पञ्चाङ्ग ।

 आरम्भ में हिन्दू विश्वविद्यालय के नाम पर “विश्वपञ्चाङ्ग” बहुत बिकता था किन्तु शीघ्र ही लोगों ने पाया कि उससे बनी कुण्डलियाँ गलत फलादेश देती हैं तो “विश्वपञ्चाङ्ग” की बिक्री कई गुणी घट गयी ।

काशी में ही अंग्रेजों ने बापूदेव शास्त्री द्वारा भौतिक खगोलविज्ञान पर आधारित पञ्चाङ्ग आरम्भ कराया जो आजतक सरकार प्रकाशित करती आयी है किन्तु वह कहीं नहीं बिकता — क्योंकि मुर्दा भौतिक पिण्डों की गति पर आधारित कुण्डली का फलादेश व्यर्थ होता है ।

डा⋅ रामचन्द्र पाण्डेय “विश्वपञ्चाङ्ग” को भौतिक गणित पर आधारित करने का प्रयास अकारण कर रहे थे,काशी से ही उनके मनोनुकूल बापूदेव शास्त्री पञ्चाङ्ग तो ब्रिटिश राज के ही युग से प्रकाशित होता आया है जिसका प्रयोग कोई नहीं करता ।

परन्तु खेद की बात है कि श्रीरामजन्मभूमि मन्दिर का आरम्भ करने के लिये जो मुहूर्त निकाला गया है वह विश्व के किसी भी प्राचीन अथवा नवीन सिद्धान्त के अनुसार सही नहीं है ।

 हिन्दू पञ्चाङ्गों को नष्ट करने का सुनियोजित प्रयास नेहरू ने आरम्भ किया जिन्होंने विक्रम संवत् की बजाय शक संवत् को राष्ट्रीय संवत् घोषित किया और भौतिक खगोलविज्ञान पर आधारित “राष्ट्रीय पञ्चाङ्ग” आरम्भ कराया — जिसका प्रयोग विश्व का कोई पण्डित अथवा पञ्चाङ्गों का जानकार नहीं करता ।

मुझे सन्देह है कि नेहरू के ही किसी समर्थक ने नरेन्द्र मोदी और भाजपा को क्षति पँहुचाने के उद्देश्य से श्रीरामजन्मभूमि मन्दिर हेतु गलत मुहूर्त का निर्धारण जानबूझकर किया है ताकि गलत मुहूर्त के कारण देश को भविष्य में क्षति पहुँचे और मोदी सरकार की किरकिरी हो तथा जनता भड़के ।

भौतिक खगोलविज्ञान पर आधारित पञ्चाङ्ग को आजकल “दृक्सिद्धान्त” कहा जाने लगा है ।

अयनांश पर मनमाने विचारों के कारण दृक्सिद्धान्त के अनेक भेद हैं जिनमें से तथाकथित चित्रापक्षीय अयनांश पर सरकारी “राष्ट्रीय पञ्चाङ्ग” आधारित है ।

 चित्रापक्षीय अयनांश आधुनिक युग में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के नौकरों की खोज है जिसे केतकर बन्धुओं ने ज्योतिष में प्रचारित किया और नेहरू द्वारा बनायी गयी “पञ्चाङ्ग रिफॉर्म कमिटी” के सचिव निर्मल चन्द्र लाहिड़ी ने “राष्ट्रीय पञ्चाङ्ग” पर लागू किया।

श्रीरामजन्मभूमि गर्भगृह के स्थान से ५ अगस्त २०२० ई⋅ दोपहर १२:१५ बजे की उक्त चित्रापक्षीय−दृक्सिद्धान्त तथा पारम्परिक बीजसंस्कारित सूर्यसिद्धान्त पर आधारित दोनों कुण्डलियाँ संलग्न चित्र में प्रस्तुत हैं ।

दोनों सिद्धान्तों में केवल शनि की राशि में अन्तर है परन्तु भावचक्र में शनि में भी अन्तर नहीं है;तथा केतु भावचक्र में अन्तर रखता है परन्तु राशिचक्र में नहीं ।

अन्य सारी बातों में दृक्सिद्धान्तीय और सूर्यसिद्धान्तीय कुण्डलियों में कोई अन्तर नहीं है ।

अब भावफल देखते हैं —

दोनों सिद्धान्तों के अनुसार लग्नेश शुक्र मृत्युभाव में हैं,अतः लग्न अशुभ है ।

केवल इतना कारण ही उक्त काल को किसी भी शुभ कर्म हेतु वर्जित करने के लिये पर्याप्त है।

बृहस्पति तृतीय तथा षष्ठ भावों के स्वामी होने के कारण अत्यधिक अशुभ हैं,और तृतीय भाव में बैठने के कारण अशुभता बढ़ गयी ।

 चन्द्रमा दशमेश हैं जिसे केन्द्रश दोष कहा जाता है । सूर्य एकादशेश हैं;एकादशेश को सर्वाधिक अशुभ माना जाता है ।

 अशुभ सूर्य में अस्त होने के कारण बुध भी अशुभ हैं । मङ्गल मारकेश भी हैं तथा मारक भी,और शत्रुभाव में हैं ।

शनि शुभ हैं किन्तु भावचक्र में अत्यधिक अशुभ बृहस्पति के साथ रहने के कारण दोषग्रस्त है । सूर्यसिद्धान्तीय कुण्डली में शनि शत्रु बृहस्पति की राशि में रहने के कारण प्रबल तथा अशुभ बृहस्पति के पूर्ण वश में हैं ।

 किन्तु दृक्सिद्धान्तीय कुण्डली में शनि स्वराशि में रहने के कारण बलवान हैं परन्तु दृक्सिद्धान्तीय कुण्डली में भी भावचक्र में शनि बृहस्पति के साथ होने के कारण दोषग्रस्त हैं ।

 दोनों सिद्धान्तों में राहु और केतु मूलत्रिकोण में होने के कारण बली हैं ।

किसी कुण्डली में केवल शनि,राहु और केतु ही प्रबल हों और अन्य सारे ग्रह अशुभ हों तो भूतप्रेत,चाण्डालों,कसाईयों,चमगादड़खोरों,आदि के उत्पात होते हैं तथा अन्य कई प्रकार के सङ्कट आते हैं ।

कहा जाता है कि मन्दिर में ऐसे पत्थरों का प्रयोग किया जा रहा है जिनकी आयु एक सहस्र वर्षों की होगी । अतः एक सहस्र वर्षों तक इस अशुभ मुहूर्त का फल  हिन्दुओं को भोगना पड़ेगा ।

इसे टाला नहीं जा सकता,कलियुग का प्रभाव है । ‘महापुरुषों’ को समझाना व्यर्थ है ।

 जिन लोगों ने जानबूझकर गलत मुहूर्त निर्धारित किया वे नरक जायेंगे,जिनको इस बात की जानकारी नहीं है उनको भगवान क्षमा कर सकते हैं क्योंकि भगवान भाव देखते हैं ।

 किन्तु अभी तो भगवान विष्णु भी क्षीरसागर में सो रहे हैं,चार मास के उपरान्त जब उठेंगे तो अपनी ही जन्मभूमि पर ऐसा करामात देखकर क्या करेंगे?अभी तो उनके अवतार का भी समय नहीं है,और सूर्य भगवान के सिद्धान्त की अवमानना करने वालों को हरिशयनकाल में सोये हुए श्रीविष्णु से भय क्यों लगेगा?

केवल इतना सन्तोष है कि बाबरी से तो बेहतर वस्तु ही बनेगी । यहाँ तो ऐसे नेता भी हैं जो कहते हैं कि राममन्दिर बनने से कोरोना नहीं हटेगा;उनके राज्य के पालघर में सन्तों की हत्या होने पर कोरोना हट गयी या महाराष्ट्र कोरोना में भी “महा” हो गया?

दो स्क्रीनशॉट संलग्न हैं जिनमें स्पष्ट लिखा है कि कौन दृक्पक्षीय है और कौन सूर्यसिद्धान्तीय ।

 दोनों मेरे “कुण्डली सॉफ्टवेयर” द्वारा निर्मित हैं । “कुण्डली सॉफ्टवेयर” में दृक्पक्षीय ऑप्शन को बन्द करके मैं वितरित करता हूँ क्योंकि ज्योतिष में दृक्पक्ष का प्रचार मैं नहीं चाहता,यद्यपि कई लोगों का कहना है कि दोनों ऑप्शन रहने पर लोग तुलना कर सकेंगे — वैसे लोगों के लिये अमरीका में रहने वाले नरसिंह राव द्वारा निर्मित “जगन्नाथ होरा” दृक्पक्षीय सॉफ्टवेयर के वर्सन ७⋅६६ में मेरा सूर्यसिद्धान्तीय ऑप्शन भी है,यद्यपि नरसिंह राव दृक्पक्ष के समर्थक हैं और सूर्यसिद्धान्तीय ऑप्शन में भी भावचलितचक्र पराशरी नहीं है ।

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