सोमवार, 12 फ़रवरी 2018

भास्वती सरस्वती प्रकरण – ६ महाभारत कालकी निश्‍चिति

प्रकरण -
महाभारत कालकी निश्‍चिति ठीकठाक किया ०९--२०१८

महाभारतको कई विद्वानोंने कपोलकल्पित ग्रंथ कहा जबकि कई अन्य विद्वान उसे सच्चा इतिहास मानकर उससे संबंधित अन्य शोध करनेमें जुट गये। इस सिलसिलेमें एक ब्रिटिशकालीन जज श्री तेलंगने १८८५ के आसपास, स्वतंत्रता सेनानी श्री तिलकने १९०५ के आसपास तथा प्रो. श्रीनिवास राघवनने १९६० में अपनी अपनी खगोलीय पढाईके आधारपर महाभारत युद्धको सच्ची घटना बताते हुए उसका काल आजसे लगभग ५००० वर्ष पुराना घोषित किया था। डॉ. वर्तक तथा श्री नीलेश ओक इसे ७५०० वर्ष पुराना मानते हैं जबकि श्री मेंडकिने अपनी २०१७ में लिखी पुस्तकमें इसे ५०२६ वर्ष बताया है।

पंचांगोंमें वराहमिहिरके हवालेसे यह वर्णन भी आता है कि इन्द्रप्रस्थसे युधिष्ठिरने अपना शक चलाया जो ३०४४ वर्ष चला। फिर विक्रम-संवत् १३५ वर्ष चला और उसके पश्चात् शालिवाहन शक चला जिसका अभी १९४०वाँ वर्ष चल रहा है। इस प्रकार महाभारतमें युधिष्ठिर राज्याभिषेकका काल ५११८ वर्ष पीछे जाता है। पंचांगोंमें वर्णित युगाब्दका भी अभी ५१२०वाँ वर्ष चल रहा है। इस आधारपर कहा जा सकता है कि युगाब्द अर्थात् द्वापर और कलियुगके संधिकालके आरंभमें ही युधिष्ठिरने अपना शक चलाया होगा।

ग्रंथोंमें वर्णितखगोलीय घटनाओंको काल्पनिक मानकर कई इतिहासकार इन्हें नकारते हैं। किन्तु इन वर्णनोंका आपसी मेल कितना अचूक है इसका प्रमाण महाभारतसे मिलता है। महाभारत युद्धसे पहले पूर्णिमाको चंद्रग्रहण और उसीके तत्काल बादकी अमावास्याको सूर्यग्रहण होनेका उल्लेख ग्रंथमें मिलता है। इसे आधार मानते हुए श्रीनिवास राघवनने उनके दिनांक भी खोजे जो ईपू २८ सितम्बर ३०६७ चंद्रग्रहण और .पू. १३ अक्तूबर ३०६७ सूर्यग्रहणके दिनांक पाये गये।

संगणकीय सॉफ्टवेअर और नक्षत्रोंकी आकाशीय गति संबंधित प्रोग्राम उपलब्ध होनेके बाद फिर एक बार सारे प्रमाण जाँचे गये। एक बार हम भी उनपर दृष्टि डालते हैं।
  • उद्योगपर्वमें कर्णके द्वारा तथा भीष्मपर्वमें व्यासके द्वारा कहा गया है कि युद्धकालमें शनि रोहिणी नक्षत्रमें था।
  • सूर्यग्रहणके दिन ज्येष्ठा नक्षत्र होनेकी बात कृष्णने कही है। और चंद्रग्रहणके दिन कृत्तिका नक्षत्र होनेकी बात कही है। यह दोनों बातें चंद्रमाकी गतिसे मेल खाती है
  • एक अन्य उल्लेखमें ज्येष्ठा नक्षत्रमें मंगलकी वक्रगति कही है
  • और दूसरेमें कहा है कि माघके शुक्ल पक्षमें शरद संपात् हुआ।

सारे भारतीय पंचांगविद् इन शब्दोंसे भलीभाँति परिचित हैं। इन संदर्भोंको लेकर श्री नरहरी आचारने अपना संगणकीय शोध किया। सबसे पहले ईपू ३५०० से ईपू १००० तकके ढाई हजार वर्षांमें शनि सौ बार रोहिणी नक्षत्रसे गुजरा है (शनि हर नक्षत्रमें लगभग वर्ष रहता है ) लेकिन इसी कालखण्डमें केवल ११ बार ऐसा हुआ है जब सूर्यग्रहणके दिन ज्येष्ठा नक्षत्र था (अर्थात् चंद्रमा ज्येष्ठा नक्षत्रमें था) इनमेंसे भी केवल दिनांक ऐसे निकले जब सूर्यग्रहण के ठीक पहलेकी पूर्णिमाको कृत्तिका नक्षत्रमें चंद्रके होते हुए उसे ग्रहण लगा था। फिर इसी कालका वह समय खोजा गया जब मंगलने वक्रगति होकर ज्येष्ठामें प्रवेश किया था परन्तु सूर्यग्रहणसे पहले पुन: सीधी गतिमें गया था। ऐसा दो बार हुआ है। इस प्रकार .पू. ३०६७ तथा .पू. २१८३ - ये दो वर्ष ऐसे हैं जब ये चारों घटनाएँ उसी वर्षमें हुई हैं - शनिका रोहिणी नक्षत्रमें होना, चंद्रका ग्रहण के दिन कृत्तिकामें होना, और उसकी ठीक अगली अमावसको चंद्रके ज्येष्ठा नक्षत्रमें होते हुए सूर्यग्रहणका होना, तथा सूर्यग्रहणसे कुछ ही दिन पहले मंगलका वक्रगति होकर ज्येष्ठामें प्रवेश करना।

कुछ अन्य नक्षत्रीय वर्णनके आधार पर (जैसे माघमें शरद संपातका होना) आचारने ईपू ३०६७ को महाभारत युद्धका सही वर्ष माना है। श्री राजाराम जैसे पुरातत्ववेत्ता भी इसी वर्षको सही मानते हैं क्यों कि ईपू २१८३ के आते आते सरस्वती नदीके सूखनेकी तथा हरप्पन सभ्यताके लोगोंके इधर- उधर स्थलांतरकी प्रक्रिया आरंभ हो चुकी थी। इससे प्रतीत होता है कि युधिष्ठिर राज्याभिषेकके ३५ वर्ष पश्चात् महाभारत युद्ध हुआ।

परंतु महाभारतमें एक अन्य उल्लेख है कि उस कालमें वसिष्ठसे सदा पीछे चलनेवाली अरूंधती उससे आगे हो गई है। सप्तर्षियोंके छठवें तारेको वसिष्ठ और उसीके पास दिखनेवाले एक छोटे तारेको अरूंधतीकी संज्ञा है और प्राचीनकथाके अनुसार ये पती-पत्नी हैं। परंतु अरूंधती तारेका आगे हो जाना एक खगोलीय घटना है जो कई हजार वर्षोंमें कभी-कभी होती है। इसीके आधारपर वर्तक तथा ओक महाभारत कालको ७५०० वर्ष पुराना मानते हैं।

कहना पडेगा कि महाभारतकालकी निश्चित गणना न भी हो पाई हो परन्तु उसमें वर्णित व्यक्ति व इतिहास कपोलकल्पित नही वरन् प्रत्यक्षघटित है।फिर चाहे पश्चिमी विद्वान् कुछ भी कहें।

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