1.स्वायम्भुव, 2.
मनवंतर समय मापन की खगोलीय अवधि है। मन्वन्तर एक संस्कॄत शब्द है, जिसका अर्थ मनु+अन्तर होता है मूल अर्थ है मनु की आयु अर्थात मनवंतर। चौदह मनु और उनके मन्वन्तर को मिलाकर एक कल्प बनता है।
एक मनवंतर काल खत्म होने पर प्रलय होती है और सभी मनुष्य और प्राणी जगत विलुप्त हो जाते हैं अर्थात धरती पर से जीवन समाप्त हो जाता है। इसके बाद पुन: सृष्टि का क्रमश: प्रारंभ होता है।
ब्रह्मा जी के एक दिन अर्थात एक कल्प में चौदह मन्वन्तर होते है और प्रत्येक मन्वन्तर में एक मनु होते है जो एक मन्वन्तर अर्थात इकहत्तर चतुर्युगी तक इस विश्व का पालन करते है।
विष्णु पुराण के अनुसार मन्वन्तर की अवधि इकहत्तर चतुर्युगी के बराबर होती है। इसके अलावा कुछ अतिरिक्त वर्ष भी जोड़े जाते हैं।
एक मन्वन्तर=71 चतुर्युगी= 852,000 दिव्य वर्ष= 30,67,20,000 मानव वर्ष। मतलब 30 करोड़ 67 लाख 20 हजार वर्ष।
प्राचीन ग्रन्थों में मानव इतिहास को पांच कल्पों में बांटा गया है। (1).हमत् कल्प एक लाख नौ हजार आठ सौ वर्ष विक्रमीय पूर्व से आरम्भ होकर 85800 वर्ष पूर्व तक, (2).हिरण्य गर्भ कल्प 85800 विक्रमीय पूर्व से 61800 वर्ष पूर्व तक, ब्राह्म कल्प 60800 विक्रमीय पूर्व से 37800 वर्ष पूर्व तक, (3).ब्रह्म कल्प 60800 विक्रमीय पूर्व से 37800 वर्ष पूर्व तक, (4).पद्म कल्प 37800 विक्रम पूर्व से 13800 वर्ष पूर्व तक और (5).वराह कल्प 13800 विक्रम पूर्व से आरम्भ होकर इस समय तक चल रहा है।
अब तक वराह कल्प के स्वायम्भु मनु, स्वरोचिष मनु, उत्तम मनु, तामस मनु, रैवत-मनु चाक्षुष मनु तथा वैवस्वत मनु के मन्वन्तर बीत चुके हैं और अब वैवस्वत तथा सावर्णि मनु की अन्तर्दशा चल रही है। सावर्णि मनु का आविर्भाव विक्रमी सम्वत प्रारम्भ होने से 5630 वर्ष पूर्व हुआ था।
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