राष्ट्रिय
सौर दिनदर्शिका व पंचांगकी
व्याख्या -- लीना
मेहेंदळे (मो.
९४२२०५५७४०)
भाग १
मधुमासारंभ
अर्थात् १ चैत्र
संवत्सरका
अर्थ है वर्ष। तस्य संवत्सरस्य
वसंतः शिरः (तैतिरीय
३-११-१०)।
अर्थ – संवत्सरका वसंत ही सिर
है। वर्षका आरंभ वसंत ऋतुके
पहले मास अर्थात् मधुमाससे
होता है।यही वसंतसंपातका
दिन भी है और इस दिन दिनमान
तथा रात्रीमान समान यानि १२-१२
घंटोंके होते हैं।
वैदिक
नामावलीनुसार १ मधुमास,
राष्ट्रिय
सौर दिनदर्शिकामें वर्णित
१ चैत्र,
तथा
ग्रेगॅरियन कॅलेण्डरका २२
मार्च यही है। सौर दिनदर्शिकामें
मधुमासमें ३० दिन रखे गये हैं
परन्तु लीप वर्षमें यह २१
मार्चको आरंभ होता है और तब
इसके ३१ दिन हो जाते हैं।
ध्यान
दें कि राष्ट्रिय सौर दिनदर्शिकामें
वर्णित १ चैत्रका अर्थ
चांद्रपंचांगमें वर्णित
चैत्र प्रतिपदा नही है। हाँ,
इतना
है कि चैत्र प्रतिपदा भी इस
दिनसे १५ दिनोंके अन्तरमें
आगे या पीछे किसी दिन पडेगी।
इस वर्षकी चैत्र प्रतिपदा ६
अप्रैल यानि सोलहवें दिन है।
यजुर्वेदमें
कहा है --
मधुश्च
माधवश्च वासंतिकावृतू। और
प्रार्थना की गई है कि इस कालके
द्यावा,
पृथिवी,
जल
हमारे लिये उत्तम ओषधियों
अर्थात् फसलोंको रससंपन्न
करें। वास्तवमें इस कालमें
स्वच्छ आकाश,
मंद
व हल्की उष्मा लिये चलनेवाला
समीर और मधुसे भरे पुष्प हमारे
वातावरणको उल्लासमय बनाते
हैं।
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भाग २
माधवमासारंभ
अर्थात् १ वैशाख
वसंतऋतुका
दूसरा महीना माधवमास है जो
ग्रेगॅरियन कॅलेण्डरके २१
अप्रैलसे आरंभ होता है। यही
राष्ट्रिय सौर दिनदर्शिकामें
वर्णित १ वैशाख तथा वैदिक
नामावलीनुसार १ माधवमास
है।राष्ट्रिय कॅलेण्डरकर्ताओंने
वैशाखसहित अगले पांच महीनोंमें
हरेकके लिये ३१ दिन तथा आश्विनसे
आरंभ कर सात महीनोंके लिये
३० दिन रखे हैं। राष्ट्रिय
सौर दिनदर्शिकामें वर्षके
३६५ दिनोंका बँटवारा इस प्रकार
किया है।
यजुर्वेदमें
वर्णन है --
मधोर्भवः
माधवः --
मधुसे
ही माधवका उदभव है। इस अर्थसे
प्रकट है कि मधुमासमें भरनेवाला
रस इस माधवमासमें फल देगा।
पूरी तरह पक्व होनेसे अब फसल
काटने योग्य हो गई है। यहाँ
फसलका तात्पर्य रबीकी फसलसे
है।
चांद्रपंचांगका
वैशाख महीना भी इसीके आसपास
आरंभ होता है,
परन्तु
सौर दिनदर्शिकामें वर्णित
१ वैशाख व पंचांगोंकी वैशाख
प्रतिपदा अलग-अलग
हैं। यह अन्तर इसलिये है कि
पंचांगोंकी तिथियाँ चंद्रमाकी
कलाओंको देखकर निश्चित की
जाती हैं। यही कारण है कि
राष्ट्रिय सौर दिनदर्शिकामें
भी १ वैशाख कहनेकी जगह १ माधव
कहा जाय तो संशयकी स्थिति
उत्पन्न नही होगी।
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भाग ३
शुक्रमासारंभ
अर्थात् १ ज्येष्ठ
राष्ट्रिय
सौर दिनदर्शिकामें वर्णित
१ ज्येष्ठ तथा वैदिक नामावलीनुसार
१ शुक्रमास ही ग्रीष्म ऋतूका
आरंभ है। शुक्रश्च शुचिश्च
ग्रैष्मावृतू --
अर्थात्
शुक्र व शुचिही ग्रीष्मके
महीने हैं। शुक्रका दूसरा
अर्थ वीर्य या ओज भी है। इस
माहका वर्णन है --
शोचतेर्ज्वलतिकर्मणः।
अर्थात् जिस माहमें सूर्यकी
तपिश जलती हुई आगकी तरह लगती
है और बढती ही जाती है,
वह
शुक्रमास है। इन दिनोंमें
तपते सूर्यकी किरणोंसे धरती
भी तप्त होकर ऊष्मावान होती
है और इस प्रकार उसमें उर्वरक
शक्तिका पुनःसंचरण होता है।
परंपरासे इस माहमें किसान
खेतीका कोई काम नही करता ताकि
सूर्यकी उष्माको धरती पूरी
तरहसे धारण कर सके और आगे खरीपकी
फसल पुष्टिकारक हो।
राष्ट्रिय
सौर दिनदर्शिका व ग्रेगॅरियन
कॅलेण्डरकी तुलना करनेपर १
ज्येष्ठका दिन २२ मईको पडता
है। इस ज्येष्ठ माहमें दिनका
काल तेजीसे बढता है और रात्री
छोटी होती चलती है। सूर्यास्तका
समय भी आगे आगे सरकता है जिस
कारण दिन और भी लम्बा जान पडता
है। इस मासके भी ३१ दिन नियत
किये गये हैं। इसका आखरी दिन
अर्थात् २१ जून वर्षका सबसे
लम्बा दिन होता है।
१
चैत्रसे आरंभ कर ३१ ज्येष्ठ
तक ९२ दिनोंको उत्तरायणका
उत्तरावर्त भी कहा जाता है
क्योंकि इस कालमें सूर्य
पृथ्वीके उत्तरी गोलार्द्धमें
विद्यमान है और निरंतर उत्तरकी
ओर जा रहा है। ज्येष्ठसमाप्तिके
अगले ही दिनसे सूर्य उत्तरी
गोलार्द्धमें रहते हुए भी
दक्षिणयात्री हो जाता है।
चांद्रपंचांगका
ज्येष्ठ महीना भी इसीके आसपास
ज्येष्ठ की प्रतिपदासे आरंभ
होता है और वह चंद्रमासे पहचाना
जा सकता है। इसी कारण हमारा
प्रस्ताव है कि राष्ट्रिय
सौर दिनदर्शिकामें ज्येष्ठ
नामकी अपेक्षा शुक्रमास कहना
अधिक उचित होगा।
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भाग ४
शुचिमासारंभ
अर्थात् १ आषाढ
ग्रीष्म
ऋतुका दूसरा महीना वैदिक
नामावलीनुसार शुचिमास है ।
राष्ट्रिय सौर दिनदर्शिकामें
इसका आरंभ १ आषाढ वर्णित है
और ग्रेगॅरियन कॅलेण्डरमें
यह २२ जूनको पडता है। उत्तरी
गोलार्द्धके देशोंके लिये
इसका यह महत्व है कि इस दिनसे
सूर्यका दक्षिणायन यानि
दक्षिणकी दिशामें प्रवास
आरंभ हो जाता है,
हालांकि
सूर्यको अभी तीन महीने और
उत्तरावर्तमें यानि उत्तरी
गोलार्द्धमें ही रहना है। २२
जूनसे दिनमान शनैः शनैः घटना
आरंभ होता है।
शुचि
नामसे ही ज्ञात होता है कि इस
मासमें वातावरण शुचिर्भूत
अर्थात् स्वच्छ होनेवाला है।
क्योंकि वर्षाका आरंभ हो जाता
है । सूर्यकी तपिश कम होती है
और पृथ्वी गंधवती हो जाती है।
वर्षाके कारण उसमें मृदुता
भी आती है और वह बीजधारणके
योग्य होती चलती है।
चांद्रपंचांगका
आषाढ महीना भी इसीके आसपास
आरंभ होता है। लेकिन स्मरण
रखना पडेगा कि सौर १ आषाढ तथा
चांद्रपंचांगकी आषाढ प्रतिपदा
अलग हैं।
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भाग ५
नभमासारंभ
अर्थात् १ श्रावण
वर्षा
ऋतुके दो महीनोंको नभ व नभस्य
कहा गया है। यजुर्वेदके अनुसार
नभश्च नभस्यश्च वार्षिकावृतू
। इस ऋतूमें वेदऋषि अच्छी
वर्षाके लिये द्यावापृथिवीकी
प्रार्थना करते हैं।
राष्ट्रिय
सौर दिनदर्शिकामें वर्णित
१ श्रावण या १ नभमास ग्रेगॅरियन
कॅलेण्डरमें २३ जुलाईको पडता
है। हमने देखा कि शुचिमास या
आषाढमें दिनमान कम होने लगता
है। उन दिनोंमें सूर्यनिरीक्षण
करनेसे पता लगता है कि सूर्यास्तका
समय प्रायः स्थिर रहता है,
जबकि
सूर्योदयमें विलम्ब आता चलता
है। इस कारण हमारा ध्यान नही
जाता कि दिन छोटा हो रहा है।
लेकिन श्रावणमें सूर्योदयके
विलम्बके साथ सूर्यास्त भी
जल्दी होने लगता है अतः दिनमान
तेजीसे घटने लगता है।
नभनामसे
ही ज्ञात होता है कि इस मासके
वातावरणमें नभ यानि आकाशपर
ही सबकी आँखें टिकी होंगी।
आकाश बादलोंसे भरा रहता है,
और
फसल बोनेके लिये किसान भी
वर्षाका स्वागत करता है। जहाँ
किसानोंने आषाढमें बुआई की
हो,
उनकी
फसलें अंकुरित होती हैैं।
चांद्रपंचांगकी
श्रावण प्रतिपदा भी इसी
महीनेमें पडती है। उसके बाद
तो पूरे महीने व्रत-त्योहारोंकी
धूम मची रहती है।
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भाग ६
नभस्यमासारंभ
अर्थात् १ भाद्र
वर्षा
ऋतुका दूसरा महीना नभस्यमास
है जो ग्रेगॅरियन कॅलेण्डरके
२३ अगस्तसे आरंभ होता है। यही
राष्ट्रिय सौर दिनदर्शिकामें
वर्णित १ भाद्र तथा वैदिक
नामावलीनुसार १ नभस्य है।
नभस्यका तात्पर्य है नभसे
बननेवाला या नभमाससे अधिक फल
देनेवाला। इस नामसे ही ज्ञात
होता है कि इस मासकी वर्षा भी
बढचढकर होगी औऱ फसलोंको बहुल
व पौष्टिक बनायेगी।
ग्रीष्ममें
तपते सूर्यके कारण जो पानी
भाप व बादल बनकर आकाशमें गया
वही भारी वर्षाके रूपमें वापस
आता है। इस मासमें सारी नदियाँ
वेगसे बहती हैं और कभी कभी बाढ
भी ले आती हैं।
चांद्रपंचांगका
भाद्रपद महीना प्रतिपदासे
आरंभ होता है जो १ भाद्रसे
अलग दिवस होता है।अतः राष्ट्रिय
सौर दिनदर्शिकामें १ भाद्रकी
जगह १ नभस्य कहना उचित जान
पडता है।
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भाग ७
इषमासारंभ
अर्थात् १ आश्विन
शरद
ऋतुका पहला महीना इषमास कहलाता
है। इषश्चोर्जश्च शारदावृतू
अर्थात् इषमास व उर्जमास शरद
ऋतूको बनाते हैं। शरत् पुच्छम्
संवत्सरस्य । अर्थात् वर्षकी
पूँछ शरद ऋतु है (जिस
प्रकार वर्षका सिर वसंत है)
।
इषमासारंभ ही शरदसंपात् भी
है अर्थात् इस दिन सूर्य
पृथ्वीके विषुववृत्तपर होगा
जिस कारण पूरी धरतीपर उसकी
किरणें लम्बरूपसे पडेंगी और
सर्वत्र दिवस व रात्री समानकालिक
– बारह बारह घंटोंके होंगे।
ग्रेगॅरियन
कॅलेण्डरमें यह २३ सितंबरका
दिवस है जिसे राष्ट्रिय सौर
दिनदर्शिकामें १ आश्विन कहा
गया है परन्तु वस्तुतः इसका
नाम १ इषमास अधिक सार्थक होता।
इस दिनसे सूर्य दक्षिण
गोलार्द्धमें प्रवेश करता
है और उसकी दिशा भी दक्षिणकी
होती है। दिनदर्शिका बनानेवाली
समितीने आश्विनसे लेकर अगले
छः महीनोंमें प्रत्येकके
लिये ३० दिनोंका समय नियत किया
है।
वसंतसंपात
व शरदसंपात इन दोनों दिनोंमें
दिवस-रात्र
समान तथा सुखकर शीतोष्ण मंंद
समीरसे प्रकृति आह्लादित
होती है। १ आश्विनके बाद इस
मासमें प्रत्येक दिन छोटा और
रात बडी होती चलती है,
इस
कारण चंद्रमाका प्रकाश देरतक
मिलता है जो फसलोंको पोषित
करता है। यही कारण है कि वेदकालमें
इसे इषमास कहा गया।
इषका
अर्थ है गन्ना। तो इषमासमें
गन्नेमें तथा अन्य सभी
वनस्पतियोंमें रस भरने लगता
है।वर्षाके बादल छँट जानेसे
आकाश पुनः निरभ्र होनेके कारण
सौंदर्यवान हो जाता है। हल्की
आह्लाददायक ठण्ड पडती है ,
इस
कारण प्रकृति भी रसमय हो जाती
है। कई सुगंधी व रंगबिरंगे
पुष्प खिलने आरंभ होते हैं।
इस माहमें आनेवाले फूल व फल
औषधी गुणोंसे भी युक्त होते
हैं।
ध्यान
दें कि १ आश्विनका अर्थ आश्विन
प्रतिपदा नही है। आश्विन
प्रतिपदा चंद्रमासे निर्धारित
होती है। प्रतिपदासे नवमीतक
दुर्गाका उत्सव व दशमीके दिन
विजयादशमीका पर्व इसी मासमें
पडते हैं।
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भाग ८
उर्जमासारंभ
अर्थात् १ कार्तिक
शरद
ऋतुका दूसरा महीना उर्जमास
कहलाता है।
इस
मासमें भी प्रत्येक दिन छोटा
और रात बडी होती चलती है,
और
चंद्रमाका प्रकाश देरतक
मिलनेके कारण फसल अधिक अच्छी
तरह पोषित होकर पकती है।
पुष्णामि चोषधिः सर्वाः
सोमोभूत्वा रसात्मकः --
अथात्
मैं ही सोम बनकर सारी फसलोंका
पोषण करता हूँ ऐसा गीताका वचन
है। कौषीतकी ब्राह्मणमें भी
कहा गया है --
शरदि
हि बर्हिष्ठाः ओषधयो भवन्ति।
अर्थात्
शरदमें ही श्रेष्ठ फसलोंका
निर्माण होता है।
ग्रेगॅरियन
कॅलेण्डरमें यह मास २३ अक्तूबरसे
आरंभ होता है और राष्ट्रिय
सौर दिनदर्शिकामें इसे १
कार्तिक कहा गया है। इसे हम
१ उर्जमास भी कह सकते हैं।
यहींसे फसलकी कटाई आरंभ होती
है जो अगले माहके अन्ततक चलती
है।
इस
मासमें ठण्डका प्रभाव बढता
है और चंद्रमा सर्वाधिक मनोहारी
हो जाता है। कार्तिक पौर्णिमाको
त्रिपुरारि पौर्णिमा कहा
जाता है और मान्यता है कि इसी
दिन शिवने त्रिपुरोंको नष्ट
किया था। शरद ऋतुकी महत्ता
इस बातसे जानी जा सकती है कि
वेदमंत्रोंमें भगवानसे
प्रार्थना की गई है --
जीवेम
शरदः शतम् --
मैं
सौ वर्ष जिऊँ।
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भाग ९
सहमासारंभ
अर्थात् १ अग्रहायण
हेमंत
ऋतुका आरंभ सहमाससे होता है।
सहश्च सहस्यश्च हेमंतिकावृतू
अर्थात् हेमन्तके दो मास हैं
--
सह
और सहस्य। राष्ट्रिय सौर
दिनदर्शिकामें इसका वर्णन
१ अग्रहायण तथा ग्रेगॅरियन
कॅलेण्डरमें यह २२ नवंबरका
दिन है। इस माहमें भी सूर्य
दक्षिण गोलार्द्धमें और
दक्षिणकी दिशामें ही प्रवासी
होता है।
भगवद्गीताके
अनुसार अग्रहायण या मार्गशीर्षको
सर्वोत्तम मास माना गया है।
फसलकी कटाई इस महीनेमें की
जाती है अतः कृषकोंके आनन्दका
यह महीना है।
इस
मासमें ठण्डका प्रभाव अत्यधिक
होता है। सूर्यका प्रतिदिन
अधिक देरसे उगना और अधिक जल्दी
अस्त हो जाना इन कारणोंसे
दिनमान तेजीसे घटने लगता है।
महीनेका अन्तिम दिन ३० अग्रहायण
या २१ दिसंबर वर्षका सबसे
छोटा दिन होता है। अगले दिनसे
सूर्यकी भासमान गति फिर एक
बार उत्तर दिशामें प्रारंभ
होती है।
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भाग १०
सहस्यमासारंभ
अर्थात् १ पौष
हेमंत
ऋतुका दूसरा महीना सहस्यमास
कहलाता है। यह ग्रेगॅरियन
कॅलेण्डरमें २२ दिसंबरका दिन
है। सबसे छोटा दिन बीतकर फिरसे
दिनमान बढनेका आरंभ इसी दिनसे
होता है। राष्ट्रिय सौर
दिनदर्शिकामें इसका वर्णन
१ पौष तथा वैदिक नामावलीनुसार
१ सहस्य है। सहस्यका अर्थ हुआ
सहमाससे अगला फल देनेवाला।
इस मासमें भी ठण्डका वर्चस्व
होता है।
इसके
पहले सहमासमें दिनमान तीव्र
गतिसे कम होता चलता है परन्तु
सहस्य मासमें दिनमान बढनेका
वेग अल्प होता है।
चूँकि
१ पौषसे पौष प्रतिपदा अलग होती
है,
अतः
हमें यही उचित लगता है कि
राष्ट्रिय सौर दिनदर्शिकामें
इसे १ सहस्य कहा जाय।
दिनदर्शिका
समितिने दिनमानके समयका
प्रमाण मानकर २२ दिसंबरसे
उत्तरायण माना है। परन्तु
इसी माहमें आगे १५ जनवरीको
सूर्यका मकर संक्रमण भी होता
है। उस दिनसे सूर्योदयका समय
पीछे सरकता है अर्थात् सूर्य
जल्दी उगने लगता है। अतः भारतीय
खगोलशास्त्री वराहमिहिरने
सुर्योदयका समय प्रमाण मानते
हुए मकर संक्रान्तिको उत्तरायणका
आरंभ माना था। सूर्योदयसे
जुडे जो भी कर्म या उत्सव होंगे
उनके लिये मकरसंक्रांतिका
विशेष महत्व हो जाता हैै।
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भाग ११
तपमासारंभ
अर्थात् १ माघ
तपश्च
तपस्यश्च शैशिरावृतू अर्थात्
शिशिर ऋतुके दो मास हैं तप और
तपस्य। पहला महीना तपमास है
जिसका आरंभ राष्ट्रिय सौर
दिनदर्शिकामें वर्णित १ माघ
तथा वैदिक नामावलीनुसार १
तपमासको और ग्रेगॅरियन
कॅलेण्डरके २१ जनवरीसे होता
है। । तप नामसे ही ज्ञात होता
है कि इस मासमें वातावरणमें
फिर एक बार धूपका प्रभाव बढ
रहा है और दिनमान भी बडा होने
लगता है। तापयतीति तपः अर्थात्
जो ठण्डसे सिकुडे व त्रस्त
लोगोंको सूर्यके आश्वासक व
स्वागतार्ह तापका अनुभव कराता
है वह तपमास है।
चांद्रपंचांगका
माघ महीना भी इसीके आसपास आरंभ
होता है। माघी पंचमीको वसंतपंचमीका
उत्सव होता है जबकि माघ महिनेका
नदिस्नान ही माघस्नान कहलाता
है और उसका विशेष महत्व है।
इस दिनके बाद दिनमान तेजीसे
बढता जाता है । और अगले तपस्य
मासके बाद दिनमान व रात्रीमान
समान होकर फिर एक बार वसंतसंपातका
आगमन होता है।
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भाग १२
तपस्यमासारंभ
अर्थात् १ फाल्गुन
शिशिर
ऋतुका दूसरा महीना तपस्यमास
कहलाता है। यह मासारंभ राष्ट्रिय
सौर दिनदर्शिकामें वर्णित
१ फाल्गुन,
वैदिक
नामावलीनुसार १ तपस्य और
ग्रेगॅरियन कॅलेण्डरका २०
फरवरी है। तपस्य नाम बताता
है कि इस मासमें वातावरणमें
धूपका प्रभाव बढ रहा है और
दिनमान भी बडा होने लगता है।
सूर्यका ताप बलपूर्वक तीव्रतासे
बढता है इस कारण इन दो महीनोंके
नाम तप और तपस्य हैं --
उनमें
भी तपस्यका फल तपसे अधिक है।
दिनमानके बढनेकी गति इसी
माहमें तीव्र होती है।
इस
माहके ३० दिन २१ मार्चको पूरे
होते हैं परन्तु लीप वर्ष
होनेपर २० मार्चको ही ३० फाल्गुन
भी पूरा हो जाता है। उस संवत्सरमें
नववर्षारंभ अर्थात् १ चैत्रका
दिवस २१ मार्चको पडेगा और
चैत्र माहमें भी ३१ दिन पडेंगे
जिससे वैशाख नित्यकी भांति
२१ अप्रैलके दिन बना रहेगा।
चांद्रपंचांगका
यह फाल्गुन महीना होता है ।
इसी मासकी पौर्णिमाको होलिका
उत्सव आता है।
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