ब्रह्मकुमारी संस्थाके एक चर्चासत्रमें मैं --
बच्चोंके साथ कभी बच्चा बनकर, कभी माता-पिता बनकर, कभी गुरु बनकर तो कभी मित्र बनकर सहना पडता है । और कई बार पद्मपत्रमिवाम्भसा की वृत्ति भी स्वीकारनी पडती है।
लेकिन यह तथ्य है कि मातापिताका संबल रहे तो बच्चे आत्महत्या नही करेंगे, न पराजयसे हताश होंगे। बहुत संभव है कि अच्छे इन्सान बनेंगे।
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